۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
मौलाना अशफाक वहीदी

हौज़ा / रौज़ा अहसास का नाम है। यदि कोई व्यक्ति रौज़ा भी रखता है लेकिन गरीब और जरूरतमंद लोगों की देखभाल नहीं करता, तो वह रोज़े के दर्शन (फलसफे) को समझ ही नहीं सका। रौज़ा केवल सहरी और इफ्तारी करने का नाम नही है बल्कि दूसरो को सहरी और इफ्तारी मे शरीक करने का नाम है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, रमज़ान का पवित्र महीना अल्लाह के करीब आने और चरित्र बनाने का सबसे अच्छा जरिया है। एक महीना अभ्यास करके अपने जीवन के बाकी हिस्सों को नियोजित करता है। रौज़ा अहसास का नाम है। यदि कोई व्यक्ति रौज़ा भी रखता है लेकिन गरीब और जरूरतमंद लोगों की देखभाल नहीं करता, तो वह रोज़े के दर्शन (फलसफे) को समझ ही नहीं सका। रौज़ा केवल सहरी और इफ्तारी करने का नाम नही है बल्कि दूसरो को सहरी और इफ्तारी मे शरीक करने का नाम है। यह बात मेलबर्न के इमामे जुमा हुज्जतुल- इस्लाम अल्लामा अशफाक वाहिदी ने बारज़बीन के तबलीगी दौरे पर ज़ैनबिया इस्लामिक सेंटर में पहले रमज़ान की एक सभा को संबोधित करते हुए कही।

उन्होंने कहा कि यह महीना बहारे कुरान का महीना है। इस महीने में, कुरान को मनुष्य के मार्गदर्शन के लिए नाज़िल किया गया। इस महीने में, जितना हम कुरान से जुडे रहेंगे और कुरान की तिलावत को मामूल बनाएगें उतना ही हम अपने जीवन को सरल बनाएंगे। आज, दुश्मन ने कुरान की वास्तविकता को समझ लिया है, यही वजह है कि वह हर दिन कुरान की निंदा कर रहा है। उसे पता चला है कि इस्लामी दुनिया के लिए सही मार्गदर्शक पवित्र कुरान है।

अल्लामा अशफ़ाक वाहिदी ने कहा कि यह महीना मुनाजात, दुआ और इस्तिगफ़ार का महीना है इसमे हम अपना हिसाब किताब करके इमामे ज़माना (अ.त.फ.श.) की सेना में शामिल हो सकते है। जहा हम बाकी दुआए कर रहे है, वही हमें सच्चे उत्तराधिकारी, इमाम ज़माना (अ.त.फ.श.) के जल्द जहूर होने के लिए भी दुआ करनी चाहिए। हमें दुनिया से अत्याचार के खात्मे और न्याय के लिए अपनी भूमिका निभानी होगी।

अल्लामा अशफ़ाक वाहिदी ने आगे कहा कि सही पाठशाला, अहलुलबेत की पाठशाला है जिसके पास पवित्र पैगम्बर मुहम्मद (स.अ.व.व.) कुरआन और अहलुलबेत हैं जो वास्तविक मार्गदर्शक हैं और यदि वे उनसे दूर हो जाते हैं तो मनुष्य विनाश के कगार पर पहुँच जाता है। अगर किसी को जीवन में सफलता चाहिए, तो उससे मार्गदर्शन लेना होगा।

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